Advocate
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जिन्दगी मेरी कितनी तन्हा है ।
ना कोई अपना ना कोई सपना है ।.।
चल रही है ,फिर भी अन्जानी राहो में ।
कभी इधर, कभी उधर ।
जब उठता है ,तूफान उदासी का ।
तो चेन उड़ जाता है तिनके कि तरह ।
तनहाई मे फसा है ,मेरा जीवन ।
पी रहा हू इसे ,दारू की तरह ।
फिर भी जाती नही ये तन्हाई ।
यादों मे समाई है, तेरी तस्वीर की तरह ।
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